संतोष सिंह राख
संतोष सिंह राख़, जनवादी क्रांतिकारी कवि, अपनी कविताओं से समाज की बीमार व्यवस्था पर प्रहार कर आमजन की आवाज़ बुलंद करते हैं।on Sep 13, 2025
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संतोष सिंह राख़ हिंदी के जाने-माने जनवादी, क्रांतिकारी कवि हैं। इनकी दो काव्य संग्रह "एक मुट्ठी राख " तथा " चाक चुम्बन " प्रकाशित हो चुकी है। इनकी रचनाएं समाज व तंत्र के बीमारू व्यवस्था के खिलाफ पुरजोर आवाज उठाती है और पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति की त्रासदी को दर्शाती है। आम जन-मानस की खुरचन की छाप छोड़ती राख की कविता बेहद ही आक्रोशित परन्तु सहज है।
स्वयं को साहित्य की तपोभूमि का बेहद निचले स्तर का उपासक बताने वाले संतोष सिंह राख पटना, बिहार के निवासी हैं। प्रारंभिक शिक्षा केंद्रीय विद्यालय खगौल, पटना से संपन्न कर भारतीय नौ सेना में सेवाएं प्रदान की। सेवा के दौरान जामिया मिलिया इस्लामिया से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। भारतीय नौ सेना में लगभग 21 साल तक अपनी गौरवपूर्ण सेवा प्रदान करने के पश्चात् लेखन कार्य से जुड़े एवम् वर्तमान में यूको बैंक, पटना में कार्यरत हैं।
राख़ के शब्दों में, "आभारी हूं श्रद्धेय शिक्षकों का, जिन्होंने क से कबूतर से लेकर, अ से अरस्तू के दार्शनिक सिद्धांतों एवं ज्ञ से ज्ञानगंगा गीता के मार्मिक दृष्टांतों से मेरी परिचय कराई। जिसने एक संकोची बैंक बेंचर को, न जाने कब, कैसे, विचारों के बोगनविलिया से झाड़, कविता के कैनवस पे ला पटका | वैसे तो कविता का लारवा ने तो पिउपा का रूप स्कूल के दिनों में हीं लेना शुरू कर दिया था। रही बात उसकी किशोरावस्था में पहुंचने की तो वह बारहवीं आते-आते बटरफ्लाई का रूप ले चुका था । समंदर में होने के बाद भी लिखने की भूख जारी रही। मैं निरंतर थपेड़ों से लड़ता रहा, डायरियां भरता रहा ।"
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