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Interview with Neha Mishra, author of 'Priyamvda'

Interview with Neha Mishra, author of 'Priyamvda'
on Jan 12, 2022
Neha Mishra - Priyamvda

Neha Mishra predominately writes about love, Nature, women & social issues. "प्रियम" is her pen name.

Her debut book is ‘Priyamvda’. It is a poetic collection that encapsulates going to one end of the human mind on an endless journey in search of love and meeting with itself.


Check out her interview: 

Frontlist: आपका पेन नेम 'प्रियम' हैं। इस प्यारे से नाम के पीछे की कहानी क्या है?

Neha: जी, शुक्रिया।

दरअसल मेरा नाम "प्रियंवदा" रखा गया था जो किसी कारणवश 8 साल की उम्र में बदल दिया गया था। ये बात मैंने अपने एक ख़ास दोस्त को बताई, जिन्हें प्रियंवदा ( प्यारी बातें करने वाली लड़की) नाम अच्छा लगा और वो मुझे "प्रियम" (प्रिय/dear) बुलाने लगे। इसीलिए जब मुझे दुबारा मेरी पहचान बनाने का मौका मिला तब मैंने पेन नेम "प्रियम" और किताब का नाम प्रियंवदा रखा।



Frontlist: 'प्रियंवदा' किस बारे में है?

Neha: जैसे कि मैंने ऊपर बताया है कि प्रियंवदा मतलब प्यारी बातें करने वाली लड़की होता है। प्रियंवदा में भी प्यार के बारे में प्यारी-प्यारी बातें की गई हैं।

प्रियंवदा छः चैप्टर्स/ अध्याय की एक क़िताब है जिसमें प्रथम अध्याय में प्रेम के विषय में कल्पनायें करते हुये बाकि के अध्यायों वास्तविकताओं से गुजरते हुये आखिर में आत्म खोज तक की एक यात्रा है प्रियंवदा।


Frontlist: कहानी का नायक/नायिका क्या आपसे संबंधित है या चरित्र पूरी तरह से काल्पनिक है?

Neha: जी, इस विषय में कुछ ना कहते हुये मैं केवल इतना ही कहूंगी कि मेरी अधिकांश रचनायें चाहे वह कविता हो, कहानी हो या कोई भी अन्य विधा ईमानदार होती हैं।


Frontlist: यह काव्य संग्रह प्रेम की भावना से ओतप्रोत है जो पुस्तक पढ़ने वाले के हृदय में भीतर तक प्रेम जगा सकता है। आपने इस पुस्तक के माध्यम से प्रेम के अर्थ को कैसे चित्रित किया?

Neha: जी, शुक्रिया आपका। मुझे लगता है कि गुस्से, चिढ़ या झुंझलाहट की तरह प्रेम भी एक भाव/ feeling ही है ऐसे में प्रेम की कोई परिभाषा नहीं गढ़ी जा सकती है और अगर गढ़ी भी जाये तो वह किसी व्यक्ति विशेष के संदर्भ में सही/ गलत हो सकती है, ना कि सार्वभौमिक सत्य ( universal truth) हां, मगर एक अंतर है जो गुस्से, चिढ़ इत्यादि भावों से प्रेम को अलग करता है वो है इसमें निहित सकारात्मकता और मेरा मानना है कि किसी भी सूरत में प्रेम में निहित यह सकारात्मकता नहीं खोनी चाहिये।


Frontlist: आपके पास 'अवधूतकन्या' के नाम से एक ब्लॉग है और आप लम्बे समय से ब्लॉग लिख रही हैं। आपकी सभी रचनायें प्रेम की पवित्रता को दर्शाती हैं। आपने कभी पाठकों के लिए प्यार के अलावा लिखने के बारे में सोचा है?

Neha: जी, मैं प्रेम के अलावा समाज, स्त्री विमर्श, प्रकृति और आध्यात्म के विषय में लिखती रहती हूं अपने ब्लॉग्स में।

मेरी अगली क़िताब भी सामाजिक विषयों से संबंधित ही है।


Frontlist: अच्छा, तो फिर अपनी नई क़िताब के बारे में बतायें, ये भी काव्य संग्रह है या कुछ और उम्मीद कर सकते हैं आपसे?

Neha: जी, यह एक कहानी की क़िताब है जिसमें विभिन्न विषयों से संबंधित कहानियां हैं। जैसे कि इसमें एक कहानी है "अपराधिनी" जो कि अपराधबोध से ग्रसित एक नेकदिल स्त्री की कहानी है। अपराध क्या है और किया है भी कि नहीं, और अगर किया है तो किन परिस्थितियों में किया है इन सब सवालों के ज़वाब तो खैर क़िताब में ही मिलेगी। इसी तरह की 16 कहानियों का संकलन है।


Frontlist: आपकी पुस्तक में कितनी क्षमता है जो पाठकों को प्रेम के प्रति उनके दृष्टिकोण को बदलने के लिए प्रेरित कर सकती है?

Neha: जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि मैं नहीं चाहती कि प्रेम की कोई एक परिभाषा हो या प्रेम किसी एक खांचे में फिट हो। हां मैं मेरी रचनाओं के माध्यम से ये कहने की कोशिश हमेशा करती हूं कि प्रेम पर विश्वास इसलिए ना खोयें कि सामने वाले ने प्रेम में बेईमानी की, आप प्रेम में इसलिए विश्वास करें कि आपने प्रेम किया और प्रेम में ईमानदार रहे। अपनी अच्छाई पर दूसरों कि बुराइयों से अधिक विश्वास करें।

 

Frontlist: कृपया पुस्तक की पसंदीदा कविताओं में से एक साझा करें, जिससे लोग भावनात्मक स्तर पर जुड़ पायें।

Neha: विश्वास करना कठिन है

उससे भी अधिक कठिन है,

पुन: प्रेम करने में सक्षम होना

इसलिए प्रेम अपनी राह स्वयं बनाता है

प्रेम से पूर्व विश्वास करना सिखाता है

परियों में, मत्स्य कन्याओं में

कहानियों में, कथाओं में

जादू में, दरवेश में, तारों के देश में,

भाग्य में, वचनों में, संभावनाओं में

प्रार्थनाओं में, सुंदर कल्पनाओं में

इस प्रकार "विश्वास"

पुन: प्रेम करना सिखाता है

और पुन: जीवित रहना भी


(प्रियंवदा से)

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