<![CDATA[ वैशाली माथुर - पब्लिशर,इंडियन लैंगविजिज़, पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया ]]> प्रकाशक के बारे में

क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं के साहित्य को सामने लाने के लिए वैशाली माथुर पेंगुइन के इंडियन लैंगवेज़ पब्लिशिंग का कार्यभार संभालती हैं। उनका काम मुख्य रूप से हिन्दी भाषा की किताबों और लेखकों पर केन्द्रित है। हिन्द पॉकेट बुक्स के पेंगुइन से जुड़ने के साथ-साथ वैशाली ने हिन्दी के पुरस्कृत, विख्यात और लोकप्रिय लेखकों जैसे-नरेंद्र कोहली, उपेंद्रनाथ अश्क, सुमित्रानन्दन पंत, सुरेन्द्र मोहन पाठक, दत्त भारती, वेद प्रकाश और ऐसे अनेक नामों को पेंगुइन से जोड़कर और प्रकाशित कर हिन्दी प्रकाशन की दुनिया में पेंगुइन की मौजूदगी को बढ़ाने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। अपनी इस भूमिका में वे पब्लिशिंग प्रोग्राम से जुड़े सभी कार्यों को संभालती हैं, इसमें अनुवाद, मार्केटिंग/पब्लिसिटी और सेल्स, लिटरेरी, जेंट्स और एजेंसियों के साथ संपर्क रखना, और पेंगुइन बुक्स के लिए भारतीय भाषाओं में किताबों के राइट्स खरीदने और बेचने जैसी जिम्मेदारियाँ शामिल हैं।

इसके अलावा, वैशाली पेंगुइन मेट्रो रीड्स और पेंगुइन आनंदा जैसे इंप्रिंट के लिए फिकशन और नॉन-फिकशन को लिस्टको आगे बढ़ाने का काम भी करती हैं। 

फ्रंटलिस्टः जब से पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया ने हिंदी पॉकेट बुक्स हासिल की है, यह हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने और पाठकों के लिए इसकी प्रासंगिकता में कैसे मदद करता है?

वैशालीः हमने पूरी लिस्ट को ध्यान से देखा है और फिर पाठकों और मार्किट के हिसाब स ेकिताबों को रीप्रिंट किया है। सम्पादकीय दृष्टिकोण से देखें तो, तीन चीज़ें की हैं हिन्द पॉकेट बुक्स की किताबों को दोबारा प्रासंगिक बनाने के लिए, एक तो किताबों के हिसाब से उन्हें नये कवर, नये फॉरमैट्स देकर दोबारा छापा है। दूसरा, जिन लेखकों की दो या दो से ज््यादा किताबें हमारे पास हैं, उन्हें एक संग छापा है जिससे की लेखक का नाम सामने आए, और तीसरी बात य ेकि हमन ेकिताबों की पब्लिसिटी और मार्केटिंग पर काफी ध्यान दिया है। सोशल मीडिया पर हम समय-समय पर इन किताबों का प्रचार करते रहते हैं-ख़ासकर जब किसी पुस्तक का विषय प्रासंगिक हो, लेखक का जन्मदिन/जयंती हो, या उनकी पुण्यतिथि हो।

फ्रंटलिस्टः नीलसन बुकस्कैन डेटा के अनुसार, मूल हिंदी शीर्षकों की पुस्तकों की बिक्री हिंदी-अनुवादित कार्यों की तुलना में बहुत कम है। इस पर आपके विचार क्या हैं?

वैशालीः हिंदी डिस्ट्रीब्यूटर्सज ़में एक बहुत सीमित प्रतिशत ही निलसन में डेटा फीड करती है, तो एक तरह से यह हिंदी किताबों का सही मापदंड नहीं है। मैंजहाँ तक देखती-समझती हूँ, यह किताब के विषय और लेखक पर निर्भर करता है कि कोई किताब कितनी बिकती है। जैसे, रामगुहा, देवदत्त पटनायक, गौरगोपालदास, सद्गुरु जैसे लिखक अब हिंदी में भी उतने ही जाने-माने है जितने कि अँग्रेज़ी में। लेकिन इनका ये स्ािान इनके लेखन और जिस विधा में ये लिखते हैं की वजह से है। थ्रिलर की दुनिया में सुरेंद्र मोहन पाठक आज भी बड़े चाव से पढ़े जाते हैं। प्रियम्वद, जोकी हिस्ट्री और पॉलिटिक्स पर लिखते हैं, स्वर्गीय नरेंद्र कोहली, आचार्य चतुर सेन जैसे बड़े लेखकों की किताबें लगातार बिकती हैं।

फ्रंटलिस्टः हिंदी पॉकेट बुक्स भारत में हिंदी और उर्दू पेपरबैक में अग्रणी है। क्या पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया इसे हासिल करने के बाद न्याय कर रही है? इन पांच वर्षों में हिंदी प्रकाशन उद्योग में पेंगुइन रैंडम हाउस कहां खड़ा है?

वैशालीः हम लोगों का प्रयास यही रहा है कि हम हिंदी में अच्छी से अच्छी किताबें प्रकाशित करें। हमने पिछले कुछ सालो ंमें पद्मश्री नरेंद्र कोहली, कवि गोपालदास नीरज, सुरेंद्र मोहन पाठक, वेदप्रकाश शर्मा, प्रियंवद जैसे जाने-माने लेखकों को तो प्रकाशित किया ही है, साथ ही नये लेखक जैसे इराटाक (लवड्रग), प्रभाकर मिश्र (एक रुका हुआ फैसला), पियूष पांडे (मनोज बाजपेयी; कुछ पाने की ज़िद) और योग गुरु धीरज वशिष्ठ (योग संजीवनी) को भी जोड़ा है। फिर अनुवाद की ज़रिए रामचंद्र गुहा, देवदत्त पटनायक और विक्रम सम्पत जैसे भारतीय लेखकों और डैनब्राउन, और डारियसफ़रू जैसे लेखकों को भी प्रकाशित कर रहे हैं। हमारी प्रकाशन सूची काफी विस्तृत है और आने वाले सालों में भी हम हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

फ्रंटलिस्टः पुस्तकें प्रकाशित करते समय आपको किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

वैशालीः हम पेंगुइन हिंदी इंप्रिंट में पिछले दस साल से भी ज्यादा समीक्षा की लिए अँग्रेज़ी अख़बारों की तुलना मे ंहिंदी समाचार पत्रो ंमें जगह कम है। हालाँकि हिंदी में समाचार पत्र अंग्रेज़ी से कहीं ज्यादा हैं, इनके पाठक भी ज्यादा हैं। तो पाठकों तक किसी किताब के बारे में जानकारी देना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इसलिए फिर हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं।

फ्रंटलिस्टः पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया भारतीय हिंदी लेखकों को एक मंच देने की दिशा में कैसे काम कर रहा है?

वैशालीः एक प्रकाशक के तौर पैर देखें तो हमारे वही क्वालिटी की मापदंड हैं जो हमारे इंग्लिश पब्लिशिंग के हैं। हमारी यह कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा विधाओं में बढ़िया ढंग से इन किताबों का ेप्रकाशित किया जाए। इनकी पब्लिसिटी पर भी ध्यान दिया जाए। किताबों और लेखकों की बारे में चर्चा हो, ऐसा हमारा प्रयास रहता है।

फ्रंटलिस्टः क्या साहित्यिक उत्सव हिन्दी लेखकों की साहित्यिक कृतियों को पर्याप्त रूप से बढ़ावा देते हैं, जैसा कि उन्होंने अंग्रेजी लेखकों के साथ किया है?

वैशालीः हिंदी साहित्यक उत्सवतो देते हैं, जैसे आज तक है, या जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल है। बाकी और फेस्टिवल्स क्षेत्रीय होते हैं जहाँ हिंदी भाषा कम बोली-पढ़ी जाती है। ज्यादातर फेस्टिवल्स या तो प्रांतीय भाषा में होते हैं या अँग्रेज़ी में। इसलिए आपको ऐसा लगेगा कि हिंदी को कम बढ़ाव ामिल रहा है। पान्डेमिक की वजह से भी उतने कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं जितने होते थे।

फ्रंटलिस्टः आंकड़ों के मुताबिक, हिंदी पाठकों का आधार अंग्रेजी जितना मजबूत नहीं है। हम अंग्रेजी पाठकों के आधार के बराबर आने के लिए हिंदी पाठकों की संख्या का विस्तार कैसे कर सकते हैं?

वैशालीः आधार मजबूत है, लेकिन निश्चय ही छोटा है। हिंदी का पाठक मनोरंजन के लिए कम पढता है, और ये मार्किट प्राइस कॉन्शिय सभी है। तो हमारा प्रयास यह रहता है कि पाठक को कम दाम में अच्छ ीकिताबें उपलब्ध कराएँ। ट्रान्सलेशन्स के माध्यम से हम इंटरनेशनल लेखकों को पाठकों तक लाते हंै। कुछ विधाएँ ऐसी हैं जिन्हें पाठक ज्यादा पढ़ते हैं जैसे राजनीति, सेल्फ-हेल्प, आदि। तो इनमें हम काफी किताबें निकालते हैं। कोशिश करते हैं कि ज्यादातर पाठकों की रूचि की पुस्तकें निकालें, सोशल मीडिया के ज़रिए उन तक पहुँचें।
 

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en Sat, 09 03, 2022 10:00 am <![CDATA[ वैशाली माथुर - पब्लिशर,इंडियन लैंगविजिज़, पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया ]]> प्रकाशक के बारे में

क्षेत्रीय भारतीय भाषाओं के साहित्य को सामने लाने के लिए वैशाली माथुर पेंगुइन के इंडियन लैंगवेज़ पब्लिशिंग का कार्यभार संभालती हैं। उनका काम मुख्य रूप से हिन्दी भाषा की किताबों और लेखकों पर केन्द्रित है। हिन्द पॉकेट बुक्स के पेंगुइन से जुड़ने के साथ-साथ वैशाली ने हिन्दी के पुरस्कृत, विख्यात और लोकप्रिय लेखकों जैसे-नरेंद्र कोहली, उपेंद्रनाथ अश्क, सुमित्रानन्दन पंत, सुरेन्द्र मोहन पाठक, दत्त भारती, वेद प्रकाश और ऐसे अनेक नामों को पेंगुइन से जोड़कर और प्रकाशित कर हिन्दी प्रकाशन की दुनिया में पेंगुइन की मौजूदगी को बढ़ाने में उल्लेखनीय योगदान दिया है। अपनी इस भूमिका में वे पब्लिशिंग प्रोग्राम से जुड़े सभी कार्यों को संभालती हैं, इसमें अनुवाद, मार्केटिंग/पब्लिसिटी और सेल्स, लिटरेरी, जेंट्स और एजेंसियों के साथ संपर्क रखना, और पेंगुइन बुक्स के लिए भारतीय भाषाओं में किताबों के राइट्स खरीदने और बेचने जैसी जिम्मेदारियाँ शामिल हैं।

इसके अलावा, वैशाली पेंगुइन मेट्रो रीड्स और पेंगुइन आनंदा जैसे इंप्रिंट के लिए फिकशन और नॉन-फिकशन को लिस्टको आगे बढ़ाने का काम भी करती हैं। 

फ्रंटलिस्टः जब से पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया ने हिंदी पॉकेट बुक्स हासिल की है, यह हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने और पाठकों के लिए इसकी प्रासंगिकता में कैसे मदद करता है?

वैशालीः हमने पूरी लिस्ट को ध्यान से देखा है और फिर पाठकों और मार्किट के हिसाब स ेकिताबों को रीप्रिंट किया है। सम्पादकीय दृष्टिकोण से देखें तो, तीन चीज़ें की हैं हिन्द पॉकेट बुक्स की किताबों को दोबारा प्रासंगिक बनाने के लिए, एक तो किताबों के हिसाब से उन्हें नये कवर, नये फॉरमैट्स देकर दोबारा छापा है। दूसरा, जिन लेखकों की दो या दो से ज््यादा किताबें हमारे पास हैं, उन्हें एक संग छापा है जिससे की लेखक का नाम सामने आए, और तीसरी बात य ेकि हमन ेकिताबों की पब्लिसिटी और मार्केटिंग पर काफी ध्यान दिया है। सोशल मीडिया पर हम समय-समय पर इन किताबों का प्रचार करते रहते हैं-ख़ासकर जब किसी पुस्तक का विषय प्रासंगिक हो, लेखक का जन्मदिन/जयंती हो, या उनकी पुण्यतिथि हो।

फ्रंटलिस्टः नीलसन बुकस्कैन डेटा के अनुसार, मूल हिंदी शीर्षकों की पुस्तकों की बिक्री हिंदी-अनुवादित कार्यों की तुलना में बहुत कम है। इस पर आपके विचार क्या हैं?

वैशालीः हिंदी डिस्ट्रीब्यूटर्सज ़में एक बहुत सीमित प्रतिशत ही निलसन में डेटा फीड करती है, तो एक तरह से यह हिंदी किताबों का सही मापदंड नहीं है। मैंजहाँ तक देखती-समझती हूँ, यह किताब के विषय और लेखक पर निर्भर करता है कि कोई किताब कितनी बिकती है। जैसे, रामगुहा, देवदत्त पटनायक, गौरगोपालदास, सद्गुरु जैसे लिखक अब हिंदी में भी उतने ही जाने-माने है जितने कि अँग्रेज़ी में। लेकिन इनका ये स्ािान इनके लेखन और जिस विधा में ये लिखते हैं की वजह से है। थ्रिलर की दुनिया में सुरेंद्र मोहन पाठक आज भी बड़े चाव से पढ़े जाते हैं। प्रियम्वद, जोकी हिस्ट्री और पॉलिटिक्स पर लिखते हैं, स्वर्गीय नरेंद्र कोहली, आचार्य चतुर सेन जैसे बड़े लेखकों की किताबें लगातार बिकती हैं।

फ्रंटलिस्टः हिंदी पॉकेट बुक्स भारत में हिंदी और उर्दू पेपरबैक में अग्रणी है। क्या पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया इसे हासिल करने के बाद न्याय कर रही है? इन पांच वर्षों में हिंदी प्रकाशन उद्योग में पेंगुइन रैंडम हाउस कहां खड़ा है?

वैशालीः हम लोगों का प्रयास यही रहा है कि हम हिंदी में अच्छी से अच्छी किताबें प्रकाशित करें। हमने पिछले कुछ सालो ंमें पद्मश्री नरेंद्र कोहली, कवि गोपालदास नीरज, सुरेंद्र मोहन पाठक, वेदप्रकाश शर्मा, प्रियंवद जैसे जाने-माने लेखकों को तो प्रकाशित किया ही है, साथ ही नये लेखक जैसे इराटाक (लवड्रग), प्रभाकर मिश्र (एक रुका हुआ फैसला), पियूष पांडे (मनोज बाजपेयी; कुछ पाने की ज़िद) और योग गुरु धीरज वशिष्ठ (योग संजीवनी) को भी जोड़ा है। फिर अनुवाद की ज़रिए रामचंद्र गुहा, देवदत्त पटनायक और विक्रम सम्पत जैसे भारतीय लेखकों और डैनब्राउन, और डारियसफ़रू जैसे लेखकों को भी प्रकाशित कर रहे हैं। हमारी प्रकाशन सूची काफी विस्तृत है और आने वाले सालों में भी हम हिंदी साहित्य को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।

फ्रंटलिस्टः पुस्तकें प्रकाशित करते समय आपको किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा?

वैशालीः हम पेंगुइन हिंदी इंप्रिंट में पिछले दस साल से भी ज्यादा समीक्षा की लिए अँग्रेज़ी अख़बारों की तुलना मे ंहिंदी समाचार पत्रो ंमें जगह कम है। हालाँकि हिंदी में समाचार पत्र अंग्रेज़ी से कहीं ज्यादा हैं, इनके पाठक भी ज्यादा हैं। तो पाठकों तक किसी किताब के बारे में जानकारी देना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इसलिए फिर हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं।

फ्रंटलिस्टः पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया भारतीय हिंदी लेखकों को एक मंच देने की दिशा में कैसे काम कर रहा है?

वैशालीः एक प्रकाशक के तौर पैर देखें तो हमारे वही क्वालिटी की मापदंड हैं जो हमारे इंग्लिश पब्लिशिंग के हैं। हमारी यह कोशिश है कि ज्यादा से ज्यादा विधाओं में बढ़िया ढंग से इन किताबों का ेप्रकाशित किया जाए। इनकी पब्लिसिटी पर भी ध्यान दिया जाए। किताबों और लेखकों की बारे में चर्चा हो, ऐसा हमारा प्रयास रहता है।

फ्रंटलिस्टः क्या साहित्यिक उत्सव हिन्दी लेखकों की साहित्यिक कृतियों को पर्याप्त रूप से बढ़ावा देते हैं, जैसा कि उन्होंने अंग्रेजी लेखकों के साथ किया है?

वैशालीः हिंदी साहित्यक उत्सवतो देते हैं, जैसे आज तक है, या जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल है। बाकी और फेस्टिवल्स क्षेत्रीय होते हैं जहाँ हिंदी भाषा कम बोली-पढ़ी जाती है। ज्यादातर फेस्टिवल्स या तो प्रांतीय भाषा में होते हैं या अँग्रेज़ी में। इसलिए आपको ऐसा लगेगा कि हिंदी को कम बढ़ाव ामिल रहा है। पान्डेमिक की वजह से भी उतने कार्यक्रम नहीं हो रहे हैं जितने होते थे।

फ्रंटलिस्टः आंकड़ों के मुताबिक, हिंदी पाठकों का आधार अंग्रेजी जितना मजबूत नहीं है। हम अंग्रेजी पाठकों के आधार के बराबर आने के लिए हिंदी पाठकों की संख्या का विस्तार कैसे कर सकते हैं?

वैशालीः आधार मजबूत है, लेकिन निश्चय ही छोटा है। हिंदी का पाठक मनोरंजन के लिए कम पढता है, और ये मार्किट प्राइस कॉन्शिय सभी है। तो हमारा प्रयास यह रहता है कि पाठक को कम दाम में अच्छ ीकिताबें उपलब्ध कराएँ। ट्रान्सलेशन्स के माध्यम से हम इंटरनेशनल लेखकों को पाठकों तक लाते हंै। कुछ विधाएँ ऐसी हैं जिन्हें पाठक ज्यादा पढ़ते हैं जैसे राजनीति, सेल्फ-हेल्प, आदि। तो इनमें हम काफी किताबें निकालते हैं। कोशिश करते हैं कि ज्यादातर पाठकों की रूचि की पुस्तकें निकालें, सोशल मीडिया के ज़रिए उन तक पहुँचें।
 

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Interviews 2 Sat, 09 03, 2022 10:00 am