• Wednesday, September 10, 2025

पुस्तक “जीना भी एक कला है”की लेखिका केशी गुप्ता, के साथ साक्षात्कार

केशी की पुस्तक जीना भी एक कला जीवन को साहस, हिम्मत और संवेदनाओं से जीने का संदेश देती है, जो आज के समय में बेहद प्रासंगिक है।
on Sep 16, 2025
पुस्तक “जीना भी एक कला है”की लेखिका केशी गुप्ता, के साथ साक्षात्कार

फ्रंटलिस्ट: आपकी पुस्तक जीवन को साहस और हिम्मत के साथ जीने का संदेश देती है। आपके अनुसार आज के कलियुग के संदर्भ में यह संदेश पाठकों के लिए किस प्रकार प्रासंगिक है?

केशी : मेरी पुस्तक जीना भी एक कला आज की कलयुग के समय में पाठकों को साहस और हिम्मत के साथ जीने का संदेश देने के उद्देश्य से ही लिखी गई है। मैं समझता हूं कि मेरे देखते-देखते एक युग परिवर्तन हो गया और जैसा समय पहले था वह अब नहीं रहा। हालांकि जीवन सदैव परिवर्तनशील होता है परंतु यदि परिवर्तन सार्थक ना तो वह यकीनन कहीं ना कहीं खलता है। आज समय ऐसा आ गया है की हर चीज का स्तर गिर चुका है। हर और एक उदासी सी छाई हुई है। आधुनिक दुनिया मशीनीकरण पर आधारित है इसलिए मानव एहसास अपना वजूद खो चुके हैं। ऐसी स्थिति में उन एहसासों को जागृत करने और जीवन को साहस और हिम्मत के साथ जीने के उद्देश्य से मन में उठती तरंगों विचारों को मैंने पंक्ति बंद कर कविता का रूप दे दिया । इस यकीन से कि मेरे पढ़ने वाले पाठक जब इन पंक्तियों को पढ़ेंगे तो कहीं ना कहीं वह उनकी रूह में उतर जायेगी। जो निराशा और उदासी को चीरकर उन्हें जीवन से जोड़ देगी।

रोशन कर दो जहां

अपने नेक बुलंद इरादों से

रहेगा जिंदा नाम तुम्हारा

रहती कायनात में

फ्रंटलिस्ट: आपकी रचनाओं में सूफ़ियाना रंग और मानवीय संवेदनाएँ झलकती हैं। क्या आपको लगता है कि आध्यात्मिकता और साहित्य साथ मिलकर टूटे हुए मन को सहारा दे सकते हैं?

केशी : जी बिल्कुल आध्यात्मिकता और साहित्य जब मिल जाते हैं तो वह एक चमत्कारी औषधि का काम करते हैं । साहित्य का काम है कि समाज में एक अच्छी सोच विचारधारा का सृजन हो और अध्यात्म वह सीढ़ी है जो अगर साहित्य से जुड़ जाए तो बेहद आसानी से हर रूह के अंदर उतार सकती है। युग कोई भी हो हर आत्मा अपने बेसिक संस्कारों से सदैव जुड़ी रहती है और वही उसकी तलाश होती है।

रोशन दिए से जो पूछा 

सबब उसकी रोशनी का

टिमटिमाते हुए वह बोला

नवाजिश उस खुदा की

फ्रंटलिस्ट: आप लंबे समय से कविता और साहित्य में सक्रिय रही हैं। यह किताब आपके पहले के लेखन से किस तरह अलग है? क्या इसे आप अपनी साहित्यिक यात्रा का मोड़ मानती हैं?

केशी : आपका यह सवाल की यह पुस्तक मेरे पहले लिखने से कैसे अलग है बड़ा ही रोचक है। समय के साथ हालात ,सोच ,सब बदल जाता है और जब आपकी विचारधारा में परिवर्तन आता है तो लेखन भी उसे हिसाब से ही चलता है। इस तरह से अगर हम देखें तो इस पुस्तक में लिखी गई कविताएं जीवन के उन अनेक अनुभवों को लेकर लिखी गई है जहां आकर यह एहसास जागृत होता है की जीवन एक संघर्ष है तो उसे जीने के लिए साहस, धैर्य से जुड़ी कला का होना ही जीवन को सार्थक करता है। आदमी जब तक हार नहीं मानता जिंदगी उसका साथ नहीं छोड़ती। जी बिल्कुल यह किताब मेरी साहित्यिक यात्रा में एक नए मोड की तरह है इस पुस्तक के पश्चात मैंने अगली पुस्तक जो लिखी उसे "मुलाकात जिंदगी से" का नाम दिया।

दर्द से रिश्ता ना रख

जोड़ ले नाता जिंदगी से

फ्रंटलिस्ट: समाज में बढ़ते अवसाद और मानसिक तनाव को देखते हुए, आपको क्या लगता है कि साहित्य किस हद तक मानसिक स्वास्थ्य के लिए सहायक साबित हो सकता है?

केशी : आज इस मंशीनीकरण की दुनिया में जिसे हम आधुनिक युग कह रहे हैं मानसिक तनाव अवसाद बढ़ता जा रहा हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि मशीनों के बढ़ते उपयोग ने मानव के दिमाग और शारीरिक गतिविधियों को नाकारा कर दिया है। आना आने वाला समय रॉबर्ट का होगा। समय परिवर्तन के साथ कागज की किताबों को पढ़ने का महत्व कम होता जा रहा है और उसका स्थान ई पुस्तकों ने ले लिया है। पर आज भी वह लोग समाज में जीवित है जो स्क्रीन से न पड़कर पुस्तक हाथ में लेकर पढ़ना पसंद करते हैं। साहित्य और साहित्यकार का काम है समाज को जगाना। यकीनन एक साहित्यकार अपनी रचनाओं के द्वारा अपने पाठकों की मानसिकता को झंझोड़ सकता है। कहते हैं की किताबें एक सच्चा साथी है और सच्चा साथी ही आपको खुशी और मानसिक सुकून प्रदान करता है।

बड़ी ऊंची इमारत में

तन्हाइयों का एहसास बहुत खलता है

फ्रंटलिस्ट: आपने लिखा है कि यदि आपकी पुस्तक से एक भी टूटा-हारा व्यक्ति प्रेरणा पा जाए तो यही आपकी सफलता होगी। यह संवेदनशील सोच कहाँ से आई? क्या यह आपके निजी जीवन के अनुभवों से उपजी है?

केशी : मेरा यह मानना है कि संवेदनशीलता के बिना इंसान इंसान नहीं। साहित्यकार वैसे भी आम आदमी के मुकाबले में अधिक संवेदनशील होता है। यदि आप में संवेदना नहीं है तो आप किसी भी भाव विचार की गहराई को समझने में समर्थ नहीं होते। संवेदना आपको हर स्थिति हर विचार हर भाव से जुड़ती है। मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानती हूं कि परमात्मा की असीम कृपा मुझ पर सदैव बनी रहे मेरा जन्म एक संवेदनशील परिवार में ही हुआ।

फ्रंटलिस्ट: आपके लेखन का बड़ा हिस्सा सामाजिक मुद्दों और मानवीय संवेदनाओं पर केंद्रित है। इस पुस्तक को लिखते समय आपके मन में सबसे प्रमुख सामाजिक संदेश क्या था जिसे आप पाठकों तक पहुँचाना चाहती थीं?

केशी : इस किताब को लिखने का प्रमुख सामाजिक उद्देश्य हर व्यक्ति तक यह संदेश पहुंचाना है कि जीवन उतार-चढ़ाव का नाम है। हिम्मत और हौसले का दामन थाम कोई भी व्यक्ति जिंदगी को शेयर और मार दे सकता है। सामाजिक ताने-बनी में नारी को जिंदगी जीने के लिए अत्यधिक संघर्ष से गुजरना पड़ता है और वही इस किताब का प्रमुख सामाजिक संदेश रहा है। इस किताब में "जीना भी एक कला है" ," कुछ तुम चलो कुछ हम चले ","तुम औरत हो ","कौन सा है घर मेरा ","मत कहो अबला बेचारी", "शाह और मात "जैसी कविताएं दर्ज हैं। जो ना सिर्फ सामाजिक ताने-बाने का सही आईना दिखातीबल्कि समाज को झंझोड़ की जागृति करने का काम करती है।

फ्रंटलिस्ट: आपकी प्रेरणा आपकी माँ से मिली, जो स्वयं अध्यापक थीं। क्या यह पारिवारिक विरासत आपके साहित्यिक दृष्टिकोण और लेखन की संवेदनशीलता को आकार देने में मददगार रही?

केशी : मां हर व्यक्ति का पहला गुरु होती है। मेरी मां सदैव से मेरी प्रेरणा स्रोत रही। वह एक अध्यापिका थी और स्कूल के कार्यक्रमों के लिए लिखा करती थी।उन्होंने मुझे हमेशा लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। आप इसे विरासत भी कह सकते हैं। मां ने हमेशा हमें संवेदनशीलता साहस और धैर्य से जीना सिखाया। उनकी दी हुई परवरिश और शिक्षा पर चलते हुए मेरा जीवन और उससे जुड़ा साहित्य आधारित है।

फ्रंटलिस्ट: हिंदी दिवस के अवसर पर आप पाठकों और नई पीढ़ी को क्या संदेश देना चाहेंगी? आपके अनुसार हिंदी भाषा साहित्य के माध्यम से समाज में साहस, जागरूकता और सकारात्मक परिवर्तन कैसे ला सकती है?

केशी : भाषा कोई भी हो वह अभिव्यक्ति का काम करती है। हिंदी साहित्य का क्षेत्र बहुत बड़ा है परंतु बदलते समय के साथ हिंदी भाषा का उपयोग कम होने लगा है। यह भारतवर्ष की बड़ी विडंबना है कि आज हर जगह अंग्रेजी भाषा का बोलबाला है। आज की युवा पीढ़ी हिंदी भाषा लिखना बोलना पढ़ना पसंद नहीं करती है। भारतवर्ष में हर जगह इंटरनेशनल स्कूल बन गए हैं जो अंग्रेजी शिक्षा पर आधारित है। ऐसे में हिंदी पढ़ने वाले पाठक कम मिलते हैं। परंतु फिर वही बात आती है कि यदि हम चाहे तो एक निर्धारित योजना के तहत हिंदी साहित्य को वापस लोगों तक पहुंचा सकते हैं। मेरे विचार में अपने देश में हिंदी भाषा का अनिवार्य होना इस और एक बड़ा कम होगा। हिंदी साहित्य ज्ञान का भंडार है और इसके माध्यम से समाज को अपनी जड़ों से जोड़ कर जागृति रखा जा सकता है।

अल्फाजों की दुनियां में

कलम की वो ताकत है

तख्त पलट जाए

जो खुल कर ये बोले

Post a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

0 comments

    Sorry! No comment found for this post.